भाषा एवं साहित्य >> हिन्दी की मानक वर्तनी हिन्दी की मानक वर्तनीकैलाश चन्द्र भाटिया
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इसमें हिन्दी के तीन अत्यधिक व्यावहारिक पक्षों को रखा गया है- वर्तनी, विरामचिन्ह्र तथा प्रूफ-संशोधन....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रस्तुत पुस्तक में हिन्दी के तीन अत्यधिक व्यावहारिक पक्षों को रखा गया
है-वर्तनी, विरामचिह्न तथा प्रूफ-संशोधन।
उक्त तीनों पक्ष एक-दूसरे से इतने अधिक संबद्ध हैं कि प्रथक करने में कठिनाई है। प्रूफ-संशोधन में जहाँ वर्तनी का शुद्ध रूप रखना पड़ता है, वहीं विरामचिन्हों के ठीक प्रयोग का। ‘मानक हिन्दी वर्तनी’ का कार्यक्षेत्र केंद्रीय हिन्दी निदेशालय का है, जिसकी सिफारिशों को इसमें समुचित स्थान दिया गया है। वर्तनी का क्षेत्र मात्र शब्दों तक नहीं है, उसमें संक्षिप्त रूप, प्रतीक, व्यक्ति-स्थान नामों का अपार भण्डार है।
वर्तनी से विराम् चिह्न जुड़े हुए हैं। यह सर्वविदित है कि पूर्ण विराम् ‘।’ के अतिरिक्त सभी चिह्न अंग्रेजी के संसर्ग से प्राप्त हुए हैं। व्याकरण की विभिन्न पुस्तकों में यत्किंचित् सामग्री विरामचिह्नो पर भी है। इस पुस्तक में पहली बार इन्हें विस्तार से समझाया गया है, जिससे विद्यार्थी व सुधी पाठक लाभान्वित होंगे।
प्रूफ-संशोधन कार्य उक्त दोनों से जुड़ा हुआ है। हिन्दी में पत्रकारिता में भी अब इसकी आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा है।
साधारणतः हिन्दी लेखक इस पुस्तक से लाभान्वित होंगे ही, साथ ही विद्वानों को इस दिशा में अंतिम रूप से निर्णय लेने में चिंतन का अवसर मिलेगा।
उक्त तीनों पक्ष एक-दूसरे से इतने अधिक संबद्ध हैं कि प्रथक करने में कठिनाई है। प्रूफ-संशोधन में जहाँ वर्तनी का शुद्ध रूप रखना पड़ता है, वहीं विरामचिन्हों के ठीक प्रयोग का। ‘मानक हिन्दी वर्तनी’ का कार्यक्षेत्र केंद्रीय हिन्दी निदेशालय का है, जिसकी सिफारिशों को इसमें समुचित स्थान दिया गया है। वर्तनी का क्षेत्र मात्र शब्दों तक नहीं है, उसमें संक्षिप्त रूप, प्रतीक, व्यक्ति-स्थान नामों का अपार भण्डार है।
वर्तनी से विराम् चिह्न जुड़े हुए हैं। यह सर्वविदित है कि पूर्ण विराम् ‘।’ के अतिरिक्त सभी चिह्न अंग्रेजी के संसर्ग से प्राप्त हुए हैं। व्याकरण की विभिन्न पुस्तकों में यत्किंचित् सामग्री विरामचिह्नो पर भी है। इस पुस्तक में पहली बार इन्हें विस्तार से समझाया गया है, जिससे विद्यार्थी व सुधी पाठक लाभान्वित होंगे।
प्रूफ-संशोधन कार्य उक्त दोनों से जुड़ा हुआ है। हिन्दी में पत्रकारिता में भी अब इसकी आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा है।
साधारणतः हिन्दी लेखक इस पुस्तक से लाभान्वित होंगे ही, साथ ही विद्वानों को इस दिशा में अंतिम रूप से निर्णय लेने में चिंतन का अवसर मिलेगा।
निवेदन
प्रस्तुत पुस्तक में हिंदी के तीन अत्यधिक व्यावहारिक पक्षों को रखा गया
है।
वर्तनी,
विरामचिह्न
प्रूफ-संशोधन
उक्त तीनों पक्ष एक-दूसरे से इतने अधिक संबद्ध हैं कि पृथक् करने में कठिनाई है। प्रूफ-संशोधन में जहाँ वर्तनी का शुद्ध रूप रखना पड़ता है, वहीं विराम चिह्नों के ठीक प्रयोग का। कंप्यूटर युग में अब यह काम कंप्यूटर सँभालने को तैयार है। नागरी में भी वर्तनी ठीक करने के लिए ‘स्पेल चेकर’ जैसे सॉफ्टवेयर तैयार हो गए हैं। एक ओर कंपोजिंग में बड़ी तेजी से कंप्यूटर का प्रवेश होता/बढ़ता जा रहा है। ऐसी स्थिति में यह नितांत आवश्यक है कि बदली हुई परिस्थितियों में इक्कीसवीं शताब्दी में प्रवेश से पूर्व हम पूरी तरह तैयार हो जाएँ। मानक हिंदी वर्तनी का कार्यक्षेत्र केंदीय हिंदी निदेशालय का है जिसकी सिफारिशों को इसमें समुचित स्थान दिया गया है। इस दिशा में कई दिग्गजों ने अपना जीवन खपा दिया, जिनमें से आचार्य किशोरीदास वाजपेयी तथा आचार्य रामचंद्र वर्मा के नाम उल्लेखनीय हैं। वर्तनी का क्षेत्र मात्र शब्दों तक नहीं है उसमें संक्षिप्त रूप, प्रतीक व्यक्ति स्थान नामों का अपार भंडार है। आकाशवाणी दूरदर्शन को इन सबकी पग-पग पर आवश्यकता पड़ती है। आशा है, केंद्रीय हिंदी निदेशालय शीघ्र ही इस दिशा में उचित कार्रवाई करेगा और अपने प्रकाशन मानक हिंदी वर्तनी में यथावश्यक संशोधन कर प्रकाशित करेगा।
‘वर्तनी’ से ही विराम चिह्न जुड़े हुए हैं। यह सर्वविदित है कि पूर्णविराम ‘।’ के अतिरिक्त सभी चिह्न अंग्रेजी के संसर्ग से प्राप्त हुए हैं। विभिन्न व्याकरण की पुस्तकों में यत्किंचित सामग्री विराम चिह्नों पर भी है। इस पुस्तक में पहली बार विस्तार से समझाया गया है जिससे विद्यार्थी व सुधीपाठक लाभान्वित होंगे।
‘प्रूफ-संशोधन कार्य’ उक्त दोनों से जुड़ा हुआ है। हिंदी पत्रकारिता में भी इसकी आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा है।
साधारणतः हिंदी लेखक इस पुस्तक से लाभान्वित होंगे ही साथ ही विद्वानों को इस दिशा में अंतिम रूप से निर्णय लेने में चिंतन का अवसर मिलेगा।
उपयोगिता की दृष्टि से जो सुझाव प्राप्त होंगे उनका स्वागत किया जाएगा।
वर्तनी,
विरामचिह्न
प्रूफ-संशोधन
उक्त तीनों पक्ष एक-दूसरे से इतने अधिक संबद्ध हैं कि पृथक् करने में कठिनाई है। प्रूफ-संशोधन में जहाँ वर्तनी का शुद्ध रूप रखना पड़ता है, वहीं विराम चिह्नों के ठीक प्रयोग का। कंप्यूटर युग में अब यह काम कंप्यूटर सँभालने को तैयार है। नागरी में भी वर्तनी ठीक करने के लिए ‘स्पेल चेकर’ जैसे सॉफ्टवेयर तैयार हो गए हैं। एक ओर कंपोजिंग में बड़ी तेजी से कंप्यूटर का प्रवेश होता/बढ़ता जा रहा है। ऐसी स्थिति में यह नितांत आवश्यक है कि बदली हुई परिस्थितियों में इक्कीसवीं शताब्दी में प्रवेश से पूर्व हम पूरी तरह तैयार हो जाएँ। मानक हिंदी वर्तनी का कार्यक्षेत्र केंदीय हिंदी निदेशालय का है जिसकी सिफारिशों को इसमें समुचित स्थान दिया गया है। इस दिशा में कई दिग्गजों ने अपना जीवन खपा दिया, जिनमें से आचार्य किशोरीदास वाजपेयी तथा आचार्य रामचंद्र वर्मा के नाम उल्लेखनीय हैं। वर्तनी का क्षेत्र मात्र शब्दों तक नहीं है उसमें संक्षिप्त रूप, प्रतीक व्यक्ति स्थान नामों का अपार भंडार है। आकाशवाणी दूरदर्शन को इन सबकी पग-पग पर आवश्यकता पड़ती है। आशा है, केंद्रीय हिंदी निदेशालय शीघ्र ही इस दिशा में उचित कार्रवाई करेगा और अपने प्रकाशन मानक हिंदी वर्तनी में यथावश्यक संशोधन कर प्रकाशित करेगा।
‘वर्तनी’ से ही विराम चिह्न जुड़े हुए हैं। यह सर्वविदित है कि पूर्णविराम ‘।’ के अतिरिक्त सभी चिह्न अंग्रेजी के संसर्ग से प्राप्त हुए हैं। विभिन्न व्याकरण की पुस्तकों में यत्किंचित सामग्री विराम चिह्नों पर भी है। इस पुस्तक में पहली बार विस्तार से समझाया गया है जिससे विद्यार्थी व सुधीपाठक लाभान्वित होंगे।
‘प्रूफ-संशोधन कार्य’ उक्त दोनों से जुड़ा हुआ है। हिंदी पत्रकारिता में भी इसकी आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा है।
साधारणतः हिंदी लेखक इस पुस्तक से लाभान्वित होंगे ही साथ ही विद्वानों को इस दिशा में अंतिम रूप से निर्णय लेने में चिंतन का अवसर मिलेगा।
उपयोगिता की दृष्टि से जो सुझाव प्राप्त होंगे उनका स्वागत किया जाएगा।
कैलाशचंद्र भाटिया
अध्याय एक
भूमिका
‘वर्तनी’
किसी शब्द को किस प्रकार वर्णों से अभिव्यक्त किया जाए, यह समस्या काफी
समय तक हिंदी में नहीं समझी जाती थी; जबकि अंग्रेजी व उर्दू में इसका
महत्त्व था। अंग्रेजी व उर्दू में अर्धशताब्दी पहले भी स्पेलिंग/हिज्जों
की रटाई की जाती थी और आज भी। हिंदी भाषा का पहला और बड़ा गुण
ध्वन्यात्मकता है। हिंदी में उच्चरित ध्वनियों को व्यक्त करना बड़ा आसान
है। जैसा बोला जाए, वैसा ही लिख जाए। देवनागरी लिपि की बहुमुखी विशेषता के
कारण यह संभव था और है। यह बात शत प्रतिशत अब ठीक नहीं है। इसके अनेक कारण
है-क्षेत्रीय आंचलिक उच्चारण का प्रभाव, अनेकरूपता, भ्रम परंपरा का
निर्वाह आदि।
जब यह अनुभव किया जाने लगा कि एक ही शब्द की कई-कई वर्तनी मिलती हैं तो इनको अभिव्यक्त करने के लिए किसी सार्थक शब्द की तलाश हुई (‘हुई’ शब्द की विविधता द्रष्टव्य है—हुइ, हुई, हुवी)।
हिंदी शब्दसागर तथा संक्षिप्त हिंदी शब्दसागर के प्रारंभिक संस्करणों में ही नहीं, सन् 1950 में प्रकाशित प्रामाणिक हिंदी कोश (आचार्य रामचंद्र वर्मा) में इसका प्रयोग न होना यह सिद्ध करता है कि इस शताब्दी के मध्य तक इस शब्द की कोई आवश्यकता नहीं समझी गई। डॉ. बदरीनाथ कपूर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है-हमें स्मरण है कि उन्हीं दिनों (1950 के आसपास) आचार्य किशोरीदास वाजपेयी से जब वर्तनी शब्द के संबंध में चर्चा हुई थी तो वे बौखला उठे थे। उन्होंने कहा था कि हम जो बोलते हैं, वही लिखते हैं इसलिए हमें शब्दों की वर्तनी रटने की कभी आवश्यकता नहीं पड़ी।’’
लगता है कि छठे दशक में यह ‘वर्तनी’ शब्द हिंदी में आ धमका; क्योंकि इस दशक में ही आगे-पीछे दो पुस्तकें प्रकाशित हुईं :
(1) शुद्ध अक्षरी कैसे सीखें-प्रो. मुरलीधर श्रीवास्तव, भारती भवन, पटना।
(2) हिंदी की वर्तनी-प्रो. रमापति शुक्ल, शब्दलोक प्रकाशन, वाराणसी।
पहली पुस्तक में प्रो. मुरलीधर श्रीवास्तव ने लेखक के इन विचारों को उद्धत किया-डॉ. कैलाशचंद्र भाटिया के अनुसार, हिंदी की वर्णमाला पूर्णतः ध्वन्यात्मक होने के कारण हिंदी की वर्तनी की समस्या उतनी गंभीर नहीं जितनी अंग्रेजी की; क्योंकि हिंदी में आज भी लिखित रूप से शब्द अपने उच्चरित रूप से अधिक भिन्न नहीं।’’
प्रो. मुरलीधरजी ने ‘अक्षरी’ शब्द का प्रयोग किया, जो चल नहीं सका; क्योंकि उसी समय लेखक ने ‘सिलेबिल’ के लिए ‘अक्षर’ का प्रयोग अपने डी. लिट्. के ग्रंथ ‘हिंदी भाषा’ में ‘अक्षर’ तथा शब्द की सीमा’ में स्थिर कर दिया। उस समय तक बिहार में ‘विवरण’ बंगाल में ‘बनान’ शब्द हिज्जे स्पेलिंग के लिए चल रहे हैं। कुछ अन्य शब्द थे।
अक्षरन्यास
अक्षर विन्यास
वर्णन्यास
वर्ण विन्यास
‘विवरण’ का यह अर्थ न ‘शब्दसागर’ में है, न (शब्द गठन) में ही प्रकट होता है; जबकि अक्षरी का अर्थ वर्तनी/हिज्जे दिया हुआ है।
जब यह अनुभव किया जाने लगा कि एक ही शब्द की कई-कई वर्तनी मिलती हैं तो इनको अभिव्यक्त करने के लिए किसी सार्थक शब्द की तलाश हुई (‘हुई’ शब्द की विविधता द्रष्टव्य है—हुइ, हुई, हुवी)।
हिंदी शब्दसागर तथा संक्षिप्त हिंदी शब्दसागर के प्रारंभिक संस्करणों में ही नहीं, सन् 1950 में प्रकाशित प्रामाणिक हिंदी कोश (आचार्य रामचंद्र वर्मा) में इसका प्रयोग न होना यह सिद्ध करता है कि इस शताब्दी के मध्य तक इस शब्द की कोई आवश्यकता नहीं समझी गई। डॉ. बदरीनाथ कपूर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है-हमें स्मरण है कि उन्हीं दिनों (1950 के आसपास) आचार्य किशोरीदास वाजपेयी से जब वर्तनी शब्द के संबंध में चर्चा हुई थी तो वे बौखला उठे थे। उन्होंने कहा था कि हम जो बोलते हैं, वही लिखते हैं इसलिए हमें शब्दों की वर्तनी रटने की कभी आवश्यकता नहीं पड़ी।’’
लगता है कि छठे दशक में यह ‘वर्तनी’ शब्द हिंदी में आ धमका; क्योंकि इस दशक में ही आगे-पीछे दो पुस्तकें प्रकाशित हुईं :
(1) शुद्ध अक्षरी कैसे सीखें-प्रो. मुरलीधर श्रीवास्तव, भारती भवन, पटना।
(2) हिंदी की वर्तनी-प्रो. रमापति शुक्ल, शब्दलोक प्रकाशन, वाराणसी।
पहली पुस्तक में प्रो. मुरलीधर श्रीवास्तव ने लेखक के इन विचारों को उद्धत किया-डॉ. कैलाशचंद्र भाटिया के अनुसार, हिंदी की वर्णमाला पूर्णतः ध्वन्यात्मक होने के कारण हिंदी की वर्तनी की समस्या उतनी गंभीर नहीं जितनी अंग्रेजी की; क्योंकि हिंदी में आज भी लिखित रूप से शब्द अपने उच्चरित रूप से अधिक भिन्न नहीं।’’
प्रो. मुरलीधरजी ने ‘अक्षरी’ शब्द का प्रयोग किया, जो चल नहीं सका; क्योंकि उसी समय लेखक ने ‘सिलेबिल’ के लिए ‘अक्षर’ का प्रयोग अपने डी. लिट्. के ग्रंथ ‘हिंदी भाषा’ में ‘अक्षर’ तथा शब्द की सीमा’ में स्थिर कर दिया। उस समय तक बिहार में ‘विवरण’ बंगाल में ‘बनान’ शब्द हिज्जे स्पेलिंग के लिए चल रहे हैं। कुछ अन्य शब्द थे।
अक्षरन्यास
अक्षर विन्यास
वर्णन्यास
वर्ण विन्यास
‘विवरण’ का यह अर्थ न ‘शब्दसागर’ में है, न (शब्द गठन) में ही प्रकट होता है; जबकि अक्षरी का अर्थ वर्तनी/हिज्जे दिया हुआ है।
‘अक्षर विन्यास’ :
शिक्षा के प्रोफेसर कृष्ण गोपाल
रस्तोगी इस
शब्द का प्रयोग बहुत तक करते रहे। यही ‘वर्ण विन्यास’
है।
अमरकोश में लिपि के लिए अक्षर विन्यासः’ तथा
‘लिखितम्’
का प्रयोग भी पर्याय के रूप में मिलता है (लिखिताक्षर-विन्यासे लिपिः)।
उपर्युक्त सभी शब्दों के होते हुए भी अब इस अर्थ में ‘वर्तनी’ ही मान्य हो गया और भारत सरकार के केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली ने न केवल इस शब्द को मान्यता दी, वरन् एकरूपता की दृष्टि से कुछ नियम भी स्थिर किए हैं (हिंदी वर्तनी का मानकीकरण।)
वर्तनी शब्द भी संस्कृत का है, जिसकी व्युत्पत्तियाँ देते हुए आचार्य निशांतकेतु ने ‘वर्तनी’ शब्द के कोशगत अर्थ दिए हैं :
मार्ग, पथ, जीना, जीवन
पीसना, चूर्ण बनाना, तकुआ (आप्टे का कोश)
ज्ञानमंडल, वाराणसी द्वारा प्रकाशित ‘बृहद् हिंदी कोश’ में पहली बार वर्तनी का अर्थ हिज्जे दिया गया। काफी विवेचन के बाद वर्तनी की बड़ी व्यापक परिभाषा स्थिर की :
‘‘भाषा-साम्राज्य के अंतर्गत भी शब्दों की सीमा में अक्षरों की जो आचार सहिता अथवा उनका अनुशासनगत संविधान है, उसे ही हम वर्तनी की संज्ञा दे सकते हैं।....वर्तनी भाषा का वर्तमान है। वर्तनी भाषा का अनुशासित आवर्तन है, वर्तनी शब्दों का संस्कारिता पद विन्यास है। वर्तनी अतीत और भविष्य के मध्य का सेतु सूत्र है। यह अक्षर संस्थान और वर्ण क्रम विन्यास है।’’
उपर्युक्त सभी शब्दों के होते हुए भी अब इस अर्थ में ‘वर्तनी’ ही मान्य हो गया और भारत सरकार के केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली ने न केवल इस शब्द को मान्यता दी, वरन् एकरूपता की दृष्टि से कुछ नियम भी स्थिर किए हैं (हिंदी वर्तनी का मानकीकरण।)
वर्तनी शब्द भी संस्कृत का है, जिसकी व्युत्पत्तियाँ देते हुए आचार्य निशांतकेतु ने ‘वर्तनी’ शब्द के कोशगत अर्थ दिए हैं :
मार्ग, पथ, जीना, जीवन
पीसना, चूर्ण बनाना, तकुआ (आप्टे का कोश)
ज्ञानमंडल, वाराणसी द्वारा प्रकाशित ‘बृहद् हिंदी कोश’ में पहली बार वर्तनी का अर्थ हिज्जे दिया गया। काफी विवेचन के बाद वर्तनी की बड़ी व्यापक परिभाषा स्थिर की :
‘‘भाषा-साम्राज्य के अंतर्गत भी शब्दों की सीमा में अक्षरों की जो आचार सहिता अथवा उनका अनुशासनगत संविधान है, उसे ही हम वर्तनी की संज्ञा दे सकते हैं।....वर्तनी भाषा का वर्तमान है। वर्तनी भाषा का अनुशासित आवर्तन है, वर्तनी शब्दों का संस्कारिता पद विन्यास है। वर्तनी अतीत और भविष्य के मध्य का सेतु सूत्र है। यह अक्षर संस्थान और वर्ण क्रम विन्यास है।’’
(वर्तनी, पृ.2)
आचार्य रघुनाथ प्रसाद चतुर्वेदी ने संस्कृत व्याकरण के वार्तिक से इसका
संबंध स्थापित करते हुए व्यक्त किया।
वार्तिक एवं वर्तनी दोनों शब्दों में ध्वनिसाम्य के साथ अर्थसाम्य भी एक जैसा ही है। सूत्र के द्वारा शब्द साधना का वैज्ञानिक विश्लेषण होता है तथा वार्तिक में सूत्रों द्वारा त्रुटिपूर्ण कथन पर पूर्ण विचार किया जाता है। वर्तनी भी इसी समानांतर प्रक्रिया से गुजरती है। वर्तनी का भी सामूहिक विशुद्ध स्वरूप ही भाषा की समृद्धि के लिए ग्राहृय है।
वार्तिक एवं वर्तनी दोनों शब्दों में ध्वनिसाम्य के साथ अर्थसाम्य भी एक जैसा ही है। सूत्र के द्वारा शब्द साधना का वैज्ञानिक विश्लेषण होता है तथा वार्तिक में सूत्रों द्वारा त्रुटिपूर्ण कथन पर पूर्ण विचार किया जाता है। वर्तनी भी इसी समानांतर प्रक्रिया से गुजरती है। वर्तनी का भी सामूहिक विशुद्ध स्वरूप ही भाषा की समृद्धि के लिए ग्राहृय है।
(नवभारत टाइम्स दिनांक 19.3.14)
‘वर्तनी’ शब्द के विरोधी होते हुए भी आचार्य वाजपेयी
आजीवन इस
समस्या से जूझते रहे, पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लिखते रहे और पुस्तकें भी
प्रकाशित करते रहे, जिनमें से शब्द मीमांसा प्रथम संस्करण, 1958 ई.) तथा
हिंदी की वर्तनी तथा शब्द विश्लेषण उल्लेखनीय हैं। शब्द मीमांसा के
निवेदनि का अंतिम वाक्य है :‘‘भाषा में शब्दों की
एकरूपता और
वाक्य में शब्दों के सही प्रयोगों का निर्दशन इस पुस्तक में आप
पाएँगे।’’
पुस्तक में बड़े विस्तार से ‘हिंदी की प्रकृति’, ‘हिंदी के अपने शब्द’, ‘संस्कृत से शब्द ग्रहण करने की पद्धति’, ‘हिंदी में विदेशी भाषाओं के शब्द’, ‘वाक्य विन्यास’ तथा परिशिष्ट में ‘अर्थ संबंधी भ्रम’ पर विचार किया गया है।
पुस्तक में बड़े विस्तार से ‘हिंदी की प्रकृति’, ‘हिंदी के अपने शब्द’, ‘संस्कृत से शब्द ग्रहण करने की पद्धति’, ‘हिंदी में विदेशी भाषाओं के शब्द’, ‘वाक्य विन्यास’ तथा परिशिष्ट में ‘अर्थ संबंधी भ्रम’ पर विचार किया गया है।
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